नामकरण संस्कार प्रयोग विधि
यद्यपि आचार्य पारस्कर ने चौथे महीने में निष्क्रमण संस्कार करने को कहा है, परंतु महापुरुष भी व्यवहारिक सफलता के लिए भविष्योत्तर पुराण के इस श्लोक - 'द्वादशेहनि राजेंद्रशीशोरनिष्करणं गृहात्' के आधार पर द्वादश दिन में नामकरण संस्कार करते हैं। नामकरण संस्कार और निष्क्रमण संस्कार को देखें तो - दोनों संस्कारों की विधियाँ यहाँ एकतंत्र में दी गई हैं, इसलिए दोनों संस्कार एक साथ ही करने चाहिए। कुल मिलाकर नामकरण-संस्कार की विधि दी गई है-
नामकरण के दिन सुबह सूतिका और पुत्र (कन्या) को स्नान कराकर पवित्र करना चाहिए। सूतिकागृह आदि को भी शुद्ध करना चाहिए।
नामकरण करने वाले पिता को स्नान करके साफ धोती, चादर आदि पहनना चाहिए, दीपक जलाकर पवित्र आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिए और आचमन, प्राणायाम आदि करना चाहिए। सभी पूजा सामग्री यथास्थान रखें।
तदनन्तर हाथमें त्रिकुश, पुष्प, अक्षत तथा जल लेकर निम्न संकल्प करे। यहाँ नामकरणसंस्कार तथा भूम्युपवेशनसहित निष्क्रमण- संस्कारका प्रतिज्ञा-संकल्प एक साथ लिखा जा रहा है-
प्रतिज्ञा-संकल्प
ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णो: आज्ञया प्रवर्तमानस्य बह्मणो द्वितीयपरार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे ..... देशे ..... प्रदेशे ..... नगरे /ग्रामे .....क्षेत्रे षष्टिसंवत्सराणां मध्ये ..... संवत्सरे ..... अयने ..... ऋतौ ..... मासे ..... पक्षे ..... तिथौ ..... नक्षत्रे ..... योगे ..... करणे ..... वासरे ..... राशिस्थिते सूर्ये .....राशिस्थिते चन्द्रे शेषेषु ग्रहेषु यथा यथाराशिस्थान स्थितेषु सत्सु एवं ग्रहगुणगण विशेषेण विशिष्टायं शुभमुहूर्ते ..... गोत्रः सपत्नीकः .....शर्मा/ वर्मा/गुप्तोऽहं मम अस्य कुमारस्य बीजगर्भसमुद्भवैनोनिबर्हणेन बलायुर्वर्चोऽभिवृद्भि व्यवहार सिद्धिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं नाम करणसंस्कारं तथास्य बालकस्य सूर्यावलोकन सहितनिष्क्रमणकर्म भूम्युपवेशनं चैकतन्त्रेण करिष्ये। करिष्यमाण नामकर्मसूर्यावलोकन सहितनिष्क्रमण भूम्युपवेशनकर्मणां पूर्वाङ्गतया स्वस्तिपुण्याहवाचनं निर्विघ्नता सिद्धयर्थं गणेशाम्बिकापूजनं मातृकापूजनं वसोर्धारा पूजनमायुष्य मन्त्रजपं सांकल्पिकेन विधिना नान्दीश्राद्धं च करिष्ये। इस प्रकार कहकर संकल्प-जल छोड़ दे।